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Friday, January 3, 2020

नैतिकता का पाठ

_*महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका था। युद्धभूमि में द्वापार का सबसे महान योद्धा "देवव्रत" (भीष्म पितामह) शरशय्या पर पड़ा सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहा था ... !*_

_*तभी उनके कानों में परिचित ध्वनि पहुँची , "प्रणाम पितामह" .... !!*_

_*भीष्म बोलें , "आओ देवकीनंदन ! मैं बहुत देर से तुम्हारा ही स्मरण कर रहा था" .... !!*_

_*कृष्ण बोले ,  "क्या कहूँ पितामह ! अब तो यह भी नहीं पूछ सकता कि कैसे हैं आप" .... ??*_

_*भीष्म ने कहा ,  "कुछ पूछूँ केशव .... ?  सम्भवतः धरा छोड़ने के पूर्व मेरे अनेक भ्रम समाप्त हो जाय " .... !!*_

_*कृष्ण बोले - कहियें न पितामह ....!*_
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_*भीष्म बोले , "एक बात बताओ कन्हैया !  इस युद्ध में जो हुआ वो ठीक था क्या .... ?"*_

_*"किसकी ओर से पितामह .... ?  पांडवों की ओर से .... ?"*_

_*" कौरवों के कृत्यों पर चर्चा का तो अब कोई अर्थ ही नहीं कन्हैया !  पर क्या पांडवों की ओर से जो हुआ वो सही था .... ?  आचार्य द्रोण का वध , दुर्योधन की जंघा के नीचे प्रहार , दुःशासन की छाती का चीरा जाना , जयद्रथ के साथ हुआ छल , निहत्थे कर्ण का वध , सब ठीक था क्या .... ?  यह सब उचित था क्या .... ?"*_

_*कृष्ण :  "इसका उत्तर मैं कैसे दे सकता हूँ पितामह ... !*_  
_*इसका उत्तर तो उन्हें देना चाहिए जिन्होंने यह किया ..... !!*_
_*उत्तर दें दुर्योधन का वध करने वाले भीम , उत्तर दें कर्ण और जयद्रथ का वध करने वाले अर्जुन .... !!*_

 _*मैं तो इस युद्ध में कहीं था ही नहीं पितामह ... !!"*_

_*भीष्म :  "अभी भी छलना नहीं छोड़ोगे कृष्ण ... ?*_
_*अरे विश्व भले कहता रहें कि महाभारत को अर्जुन और भीम ने जीता है , पर मैं जानता हूँ कन्हैया कि यह तुम्हारी और केवल तुम्हारी विजय हैं ... !*_  
_*मैं तो उत्तर तुम्ही से पूछूंगा कृष्ण ... !"*_

_*कृष्ण :  "तो सुनिए पितामह ... !*_ 
_*कुछ बुरा नहीं हुआ , कुछ अनैतिक नहीं हुआ ... !*_
_*वही हुआ जो हो होना चाहिए ... !"*_

_*भीष्म : "यह तुम कह रहें हो केशव ... ?*_
_*मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अवतार कृष्ण कह रहा है ... ?  यह छल तो किसी युग में हमारे सनातन संस्कारों का अंग नहीं रहा, फिर यह उचित कैसे हो गया ... ? "*_
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_*कृष्ण :   "इतिहास से शिक्षा ली जाती हैं पितामह , पर निर्णय वर्तमान की परिस्थितियों के आधार पर लेना पड़ता हैं ... !*_

_*हर युग अपने तर्कों और अपनी आवश्यकता के आधार पर अपना नायक चुनता हैं .... !!*_
 _*राम त्रेता युग के नायक थे , मेरे भाग में द्वापार आया था .... !*_  
_*हम दोनों का निर्णय एक सा नहीं हो सकता पितामह ... !!"*_

_*" नहीं समझ पाया कृष्ण ! तनिक समझाओ तो ... !"*_

_*" राम और कृष्ण की परिस्थितियों में बहुत अंतर है पितामह ... !*_  
_*राम के युग में खलनायक भी ' रावण ' जैसा शिवभक्त होता था ... !!*_
_*तब रावण जैसी नकारात्मक शक्ति के परिवार में भी विभीषण जैसे सन्त हुआ करते थे ... !  तब बाली जैसे खलनायक के परिवार में भी तारा जैसी विदुषी स्त्रियाँ और अंगद जैसे सज्जन पुत्र होते थे ... !  उस युग में खलनायक भी धर्म का ज्ञान रखता था ... !!*_

 _*इसलिए राम ने उनके साथ कहीं छल नहीं किया ... ! किंतु मेरे युग के भाग में कंस , जरासन्ध , दुर्योधन , दुःशासन , शकुनी , जयद्रथ जैसे घोर पापी आये हैं ... !! उनकी समाप्ति के लिए हर छल उचित हैं पितामह ... ! पाप का अंत आवश्यक हैं पितामह , वह चाहे जिस विधि से हो ... !!"*_

_*भीष्म :  "तो क्या तुम्हारें इन निर्णयों से गलत परम्पराएं नहीं प्रारम्भ होंगी केशव ... ?*_ 
_*क्या भविष्य तुम्हारे इन छलों का अनुशरण नहीं करेगा .... ?*_  
_*और यदि करेगा तो क्या यह उचित होगा ... ??"*_
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_*कृष्ण : " भविष्य तो इससे भी अधिक नकारात्मक आ रहा है पितामह ... !  कलियुग में तो इतने से भी काम नहीं चलेगा ... !  वहाँ मनुष्य को कृष्ण से भी अधिक कठोर होना होगा ...  नहीं तो धर्म समाप्त हो जाएगा ... !*_

_*जब क्रूर और अनैतिक शक्तियाँ  सत्य एवं धर्म का समूल नाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता अर्थहीन हो जाती हैं पितामह ... !*_ 

_*तब महत्वपूर्ण होती हैं "विजय", केवल "विजय" .... !*_

_*भविष्य को यह सीखना ही होगा पितामह ... !!"*_

_*भीष्म : "क्या धर्म का भी नाश हो सकता हैं केशव ... ?*_
_*और यदि धर्म का नाश होना ही हैं , तो क्या मनुष्य इसे रोक सकता हैं ... ?"*_

 _*कृष्ण :  "सबकुछ ईश्वर के भरोसे छोड़ कर बैठना मूर्खता होती हैं पितामह ... ! ईश्वर स्वयं कुछ नहीं करता ... !  केवल मार्ग दर्शन करता हैं।*_
  
_*सब मनुष्य को ही स्वयं  करना पड़ता हैं ... !*_
_*आप मुझे भी ईश्वर कहते हैं न ... !*_
_*तो बताइए न पितामह, मैंने स्वयं इस युद्घ में कुछ किया क्या ... ?*_
_*सब पांडवों को ही करना पड़ा न ... ?*_
_*यही प्रकृति का संविधान हैं ... !*_  
_*युद्ध के प्रथम दिन यही तो कहा था मैंने अर्जुन से ... ! यही परम सत्य हैं ... !!"*_
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_*भीष्म अब सन्तुष्ट लग रहें थे ... !*_
_*उनकी आँखें धीरे-धीरे बन्द होने लगीं थी ... !*_
 _*उन्होंने कहा - चलो कृष्ण ! यह इस धरा पर अंतिम रात्रि हैं ... कल सम्भवतः चले जाना हो ... अपने इस अभागे भक्त पर कृपा करना कृष्ण ... !"*_

_*कृष्ण ने मन में ही कुछ कहा और भीष्म को प्रणाम कर लौट चले , पर युद्धभूमि के उस डरावने अंधकार में भविष्य को जीवन का सबसे बड़ा सूत्र मिल चुका था :-*_
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_*"जब अनैतिक और क्रूर शक्तियाँ  सत्य और धर्म का विनाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता का पाठ आत्मघाती होता हैं ...।"*_
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